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स्पोटर्स रिपोर्टिंग का पहला दिन

मेरी आवाज
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शिवेष सिंह राना

अपरान्ह करीब तीन बजे थे किस ओर से ग्रीन पार्क चलें इस ओर से………. नहीं यह रास्ता सही रहेगा। इसी ऊहा-पोह में साकेत नगर से ग्रीनपार्क तक का रास्ता तय कर लिया था हमने । टेबल टेनिस के जिला ओपन की पहली मर्तबा रिपोर्टिंग को भेजे गए थे, डीएमसी तृतीय वर्ष प्रिंट विशेषज्ञता हासिल करने को बेताब थी।

गंतव्य पर पंहुचकर मैने देखा कि ग्रीनपार्क का मुख्य गेट केवल इतना खुला था कि जिससे दो पहिया वाहन सवार येन-केन-प्रकारेण अपनी गाड़ी अंदर ला सकें। कालेज से साथ निकले नौ लोगों में अभी हम पांच ही ग्रीनपार्क पहंचे थे। गेट से अंदर घुसते ही जेहन में एक सवाल आया गेटकीपर कहां गया? यदि वह होता तो बताता कि गाड़ी कहां खडी़ करें और शायद यह भी पूंछता कि आप कहां से व किस काम से आये हैं? साथियों का इंतजार कर रहे हम लोगों ने जैसे ही पार्क में हो रहे क्रिकेट मैच देखने के लिए पैर आगे बढ़ाया वैसे ही एक आवाज आर्इ कहां जाना है आपको? मैं समझ गया संभवत: गेट कीपर ही होगा। पलटकर देखा तो उसे ही पाया। हमसे आने का कारण पूछने के बाद उसने बताया कि पीछे वाले गेट से जाइये।

इतने में हमारे दो साथी और आ गए। राघवेन्द्र और अभिषेक। आपस में चुहलबाजी करते हुए चर्चा हुर्इ कि भर्इ! प्रशांत बाबू और रिषीश कहां रह गए? कुछ खाने तो नहीं लगे? इतने में किसी ने बोला साथ में रिषीश है कहीं कुछ और न खा गया हो सीधा साधा प्रशांत। खैर पीछे वाले गेट पर पहुंचे गाडि़यां गेट के बाहर ही खडी़ कीं ।

हम आपस में बात कर ही रहे थे कि ये वही ग्रीन पार्क है जिसने बड़े-बडे़ अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैचों के यादगार क्षण खुद में संजोए हैं। मौजूदा समय में यूपीसीए और राज्य सरकार के बीच तालमेल न होने के कारण कनपुरिये अपने प्रिय खेल के कानपुर में न हो पाने से निराशाग्रस्त हैं। तभी प्रशांत और रिषीश मीठी सुपारी से मुंह लाल किए आ जाते हैं। मैं,अंकुर और प्रवीन थोड़ा इधर -उधर घूमकर माहौल का जायजा ले ही रहे थे कि प्रवीण ने अपनी क्षुधा (जो वह बर्दाश्त नहीं कर सकता) के बारे में मुझे बताया।

प्रशांत और रिषीश फीचर लेखन के लिहाज से ग्रीन पार्क के मुख्य गेट की ओर चले गए थे, संभवत: पहले वे सीधे पीछे वाले गेट से ही आए हों। तीव्र भूख के कारण प्रवीण को न जिला ओपन में भाग ले रहे छोटे-छोटे बच्चे दिखार्इ दे रहे थे, न ही उनके द्वारा संजोए गए उनके भविष्य के सपने और न ही अपने कालेज के बच्चों की हौसला आफजार्इ कर रहे उनके खेल गुरु।

अनन्त शेखर सर जिन्होंने हमें वहां रिपोर्टिंग का अवसर दिया था, उन्हें साथ न पाकर काफी निराश थे। लखनऊ के अंकुर ने आर्इ नेक्स्ट आफिस जो ग्रीनपार्क के मुख्य गेट की ओर जाने पर चौराहे पर पड़ता है वहां जाने की इच्छा जतायी तो प्रवीण अंकुर से- जिसके पास गाड़ी होती है वो ज्यादा ही………. कहते हुए अपने बाल संवारने लगा। उसका इतना कहना ही हुआ कि मैं गाड़ी लेकर आया। दोनो बैठते कहने लगे भर्इ सिधार्इ का जमाना नहीं है। जब व्यकित कुछ सुन लेता है तभी लाइन में आता है। चौराहे पर अंकुर को छोड़ने के बाद थोड़ा आगे भटूरे खाने के इरादे से गए हम लोगों ने आलू का परेठा खा कर अपनी भूख मिटायी। खाते समय यह भी चिंता थी कि कहीं साथ आर्इं गरिमा और आकांक्षा अकेली न हों। यह चिंता लौटते ही समाप्त हो गयी जब वहां अपने सभी साथियों को पाया।

रिषीश एक गाडी़ में बैठ बच्चों से सवाल जवाब में जुटा था और प्रतिभागी बच्चों में कौतूहल का केंद्र बना हुआ था। शायद आकांक्षा को रिषीश का बच्चों के साथ हंसी -ठिठौली करके सवाल जवाब करने का तरीका पसंद नहीं आ रहा था। खैर! चार बज चुके थे। प्रतियोगिता शुरू होने वाली थी। हम सभी अंदर जाकर कुर्सियों पर आधिपत्य जमा कर आयोजक के पास बैठ गये और शुरु हो गयी रिपोर्टिंग।

मेरे पीछे बैठे बच्चे ने टेबल टेनिस खेल रहे दो बच्चों के गैर जिम्मेेदाराना खेल पर आश्चर्य जाताते हुए कहा ये दोनों क्या कर रहे हैं? बगल में बैठे सेंट थामस के बच्चे का जवाब मुजरा कर रहे हैं,क्या मतलब है? सुनकर हम हतप्रत रह गए। प्रवीण ने जवाब देने वाले से पूंछ ही लिया कि बेटा कौन मुजरा करने आया है? जरा हमें भी बताओ। सुनकर उस बच्चे को अपनी गल्ती का एहसास हो गया। उसने शर्म से नजरें नीचे झुकाकर अपनी गल्ती को स्वीकारा और बगल से वह कब गायब हो गया हमें पता ही नहीं चला।

हम टेबल टेनिस खेल देख तो रहे थे, पर शायद खेल हमारी समझ से परे था। खेल समझने में हो रही माथापच्ची को अनन्त सर ने आते ही दूर कर दिया। उन्हाेंने थ्योरी में लिखी गयी बातों का सत्यापन शुरु कर दिया। इससे पहले सर के हाल में आते ही कार्यक्रम का आयोजन कर रहे लोगों ने खड़े होकर नमस्कार , हाथ मिलाकर उनका सम्मान किया। उनके वहां पहुंचने पर खुशी जताते हुए आयोजक ने सर का गला तर करने के लिए उनके मना करने के बावजूद शीतल पेय मंगा दिया।

खेल के बीच-बीच में लाइट जाने पर बच्चे खूब शोर मचाते। सर का अच्छा परिचय होने के कारण हमें इन फील्ड जाकर खेल को करीब से देखने का मौका मिला और कर्इ ऐसे अनकहे पहलू सामने आये जो फील्ड रिपोर्टिंग में ही दिखार्इ देते हैं। थोडी़ देर खेल देखने के बाद शुरुआत में आते हुए जो एक नर्इ दुनियां में आने का एहसास था जाता रहा। तीन मैचों का रिजल्ट जानकर हम सर के साथ बाहर आ गए। बाहर आते हुए भी सर ने हम लोगों को अपने समय का सदुपयोग करते हुए जानकारी देना जारी रखा।

शहर के अलग-अलग सीमा क्षेत्रों में रहने के कारण हम सब एक बार फिर अलग हो गए। टेबल-टेनिस की रिपोर्टिंग कर मैने एक अलग अनुभव महसूस किया जो शायद ताजि़न्दगी मुझे याद रहेगा।

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