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तकि न रहे कोई ख्वाहिश बाकी

मेरी आवाज
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शिवेष सिंह राना
ख्वाहिशों का कोई अंत मुमकिन नहीं है। पर इसका मतलब यह भी तो नहीं कि सभी ख्वाहिशें पूरी हो ही जाएं। ऐसा नहीं है कि ख्वाहिशें कभी हकीकत में नहीं बदल सकती। जितना आपको पाने का अधिकार है उतना आपसे कोई छीन नहीं सकता। हां ये जरूर हो सकता है कि थोड़ी देर से हासिल हो?
लेकिन जो आपके हिस्से का है उसे कोई भी कैसे भी आपसे नहीं ले सकता। क्योंकि वह आपके हिस्से का है और सिर्फ आपका।
अपना अधिकार पाने के लिए व्यक्ति को सदैव प्रयासरत रहना चाहिए। यदि आप यह सोचेंगे कि जो भाग्य में लिखा है उसे भला आपसे कौन छीन सकता है? तो आप वहां गलत साबित हो जाएंगे।
कहते हैं कर्म ही पूजा है। बिना कर्म के सब बेकार है। यदि आप कर्म ही नहीं करेंगे तो फल की इच्छा क्या करेंगे?
कुल मिलाकर जब आप बीज ही नहीं बोएंगे तो फसल काटने के बारे में कैसे सोच सकते हैं?
कर्म को प्रधान मानना चाहिए। कर्म को ईश्वर की महत्ता दी जाती है।
यदि आप अच्छे कर्म करते हैं तो अच्छे फल पाने से कोई भी ‘‘सूरमा’’ आपको रोक नहीं सकेगा। बुरे कर्म करेंगे तो बुरा फल ही पाएंगे। क्योंकि बुरे काम का नतीजा भी बुरा ही होता है।
आप क्या पाने के हकदार हैं और क्या नहीं? ये सब आपकी काबलियत और कोंिशशों पर निर्भर करता है। अपनी सफलता और असफलता का दोष किस्मत को देकर आप खुद को धोखा ही देंगे।
हर बात की कोई न कोई वजह होती है। अपनी असफलता की वजह ढ़ूंढ़े और उस वजह को दूर करने के प्रयास में जुट जाएं। यदि आप अपनी असफलता का कारण ही ढ़ूंढ़ नहीं पाएंगे तो उसका निवारण कैसे करेंगे? आप कैसे आगे बढ़ सकेंगे?
अतः सदैव अपनी गल्तियों को पहचानो और उनको दूर करने की कोशिश में लग जाएं।
यदि आपको बार-बार असफलता का सामना करना पड़ रहा है तो इसके दो कारण हो सकते हैं-
1- या तो वह रास्ता आपके लिए बना ही नहीं यानि आप भलीभांति अपनी काबलियत पहचान नहीं पाए।
2-या फिर आपकी कोंिशशों में कहीं न कहीं कमी रह गई जो आप अपने प्रयासों में पूर्ण रूपेण सफल नहीं हो सके।
इसलिए अपनी मेहनत को सही दिशा दें। अपने ऊपर विश्वास करें कि कोई भी ख्वाहिश आपके प्रयासों से ऊपर नहीं है।
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