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एक हादसा ऐसा भी

मेरी आवाज
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शिवेष सिंह राना
आग लग चुकी थी। ये आग कितनों की जिन्दगी लीलेगी, इसका अन्दाजा लगाना मुश्किल होता जा रहा था। इस आग की लपटों के बीच न जाने कितने आशियाने वीरानों में सिमट गए थे। तबाही का ये मंजर मेरी आंखों के सामने हो रहा था और मैं चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहा था।

burning fire
burning fire

जब देशवासी अपनी-अपनी तरह से 63वां गणतंत्र दिवस मनाने में मशगूल थे, उसी समय एक कोने से चले आग के ंशोले ज्वालामुखी बन 50 मीटर की परिधि में सब कुछ खाक कर चुके थे। शायद कुछ लोग गणतंत्र के लिए शहादत की बलि चढ़ गए थे।
मां के ममत्व के बारे में सुना था, देखा भी था। लेकिन मां की ऐसी चाहत का नजारा शायद ही कभी देखा था। बचपन में पढ़ा था कि समाज में सती प्रथा का चलन था। जो बहुत पहले समाप्त हो चुका है। लेकिन आज कोई मां क्या अपने बच्चों के खातिर आग की जलती लपटों से टक्कर लेने को तैयार होगी? ऐसा सोचा न था।
तेज आग की लपटों के बीच माँएं अपने बच्चों को आग से निकालने की जद्दोजहद में जुटी हुई रहीं। जब तक वे अपने बच्चों को अपने ममता के दामन की छांव दे पातीं उससे पहले ही आग की तेज फुंकार उन्हें वापस जाने पर मजबूर कर देती। फिर भी माँएं अपने बच्चों की जिन्दगी के लिए आग से लगातार जूझती रहीं। भले ही उनका प्रयास सफल न हो सका लेकिन उनके मातृत्व की झलक हीे बहुत कुछ सिखा गई।
जहां आग लगाई गई थी, मैं उससे कुछ दूरी पर खड़ा था। दुःख इस बात का है कि यह सब मेरी आंखो के सामने हुआ और मैं अनजान बना कैसे खड़ा रहा? शायद मुझे इस बात का जरा भी अंदेशा न था कि माचिस की तीली से निकली चिंगारी से बनी आग न जाने कितनों के घर तबाह कर देगी? कितनी मांओं की गोद सूनी कर देगी और कितनांे के सपनों में पंख लगने से पहले ही उन्हें कुतर डालेगी।
आग बुझने की कगार पर थी। मैं इस आस से घूम-टहल रहा था कि ‘काश मैं किसी बच्चे को उसकी मां तक सही सलामत पहुंचा पाता?’’ तभी कुछ बच्चों की आवाज ने मेरी बांछे खोल दीं। मुझे लगा कोई तो है जिसे मैं बचा सकता हूं? यह एक ऐसा ख्वाब था जिसे टूटने में क्षणिक देर न लगी। वह आवाज थोड़ी दूर से आई थी और वहां सभी सकुशल थे।
आप सोच रहे होंगे कि इतना बड़ा संयोजित हादसा हो गया और लोगों ने सड़क जाम नहीं किया। और तो और मुआवजे की मांग तक नहीं हुई। चुनावी बयार में कोई राजनेता परिजनों को ढ़ांढस बंधाने क्यों नहीं पहुंचा? यहां तक कि मीडिया ने कवरेज क्यों नहीं की? ये वही मीडिया है जो बीच सड़क में यदि एक कार जल जाती है तो अपने संवाददाता से पूरी घटना की बारीकी से जानकारी लेता है कि आग कैसे लगी? कितने लोग दुर्घटनाग्रस्त हुए? दुर्घटना के क्या कारण थे……..।
दरअसल एक खेलप्रेमी ने खेतों की झाडि़यों में महज इसलिए आग लगा दी थी जिससे झाडियों में गई गेंद लुकाछिपी का खेल न खेल सके। लेकिन जब झाडि़यों में आग लगी तो उसके अंदर डेरा जमाए अनगिनत कीड़े-मकोड़े जलकर खाक हो गए। जिन पक्षियों ने अपना आशियानों का ठिकाना उन झाडि़यों को चुना था, उन्हें क्या पता था कि जिन झाडियों में वे अपने सुखी जीवन का सपना संजो रहे हैं वे इन झाडि़यों के साथ जलकर राख हो जाएंगे?
आग बुझने तक पक्षियों को इन्तजार था कि कब इस राख को हटाकर उनके परिजन बाहर आएंगे और कब वे अपने दामन में समेटा हुआ प्यार उनपर न्योछावर कर पाएंगे।

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